दो धुर्वीय विश्व की शुरुआत ( start of two polar world ) politicalstudyhub cold war (ii)


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दो धुर्वीय विश्व की शुरुआत

जैसा के हम सब जानते हे की शीत युद्ध के दौरान दो महा शक्तियों का उदय हुआ था "सोवियत संघ और अमेरिका" | यही वह दौर था जब विश्व दो गुटों में बट गया | अब ऐसे में कमजोर देशों के पास दो चारे थे पहला या तो स्वयं को किसी भी महा शक्ति के गुट में शामिल कर ले और अपने आप को दूसरी महा शक्ति और उसके गुट से सुरक्षित रखे या सवयं को दोनों महा शक्तियों जितना शक्तिशाली बना के और सवयं की रक्षा करे | अधिकतर देशो ने अपनी सहुलिया के अनुसार किसी भी महाशक्ति के गुट में खुद को शामिल किया और इसी प्रकार से विश्व दो धुर्वीय हो गया | 

छोटे देशो में खुद को संरक्षण देने हेतु अपने आप को किसी किसी गुट में शामिल कर लिया और महाशक्तियां इन देशो को आर्थिक सैनिक सहायता प्रदान करती थी और इसके बदले में महाशक्तियों को छोटे देशो से आर्थिक मदद ,भू-क्षेत्र, सैनिक ठिकाने और महत्वपूर्ण संसाधन मिलते थे | ज्यादातर देशो ने अमेरिकी गुट में शामिल होना पसंद किया वही पूर्वी यूरोप ने सोवियत संघ में इसी के चलते सोवियत संघ के गुट को पूर्वी खेमा और अमेरिका के गुट को पश्चिमी खेमा कहा गया और विश्व दो खेमो में परिवर्तित हो गया|

दो खेमो में बाटने के साथ साथ इन खेमो ने अपने अपने संगठन भी बनाना शुरू कर दिए सन १९४९ अप्रैल में नाटो संगठन की स्थापना की साथ ही ये शपथ ली की उत्तरी अंटलांटिक संधि संगठन "नाटो" के सभी सदस्य एक दूसरे की हर प्रकार से मदद करेंगे और नाटो के किसी एक देश पर हमला पुरे संगठन के ऊपर हमला मन जायेगा | सोवियत संघ ने भी अपने गुटों के साथ एक संगठन बनाया सन १९५५ में वारसा संधि , जिसकी नींव इस विचार पर राखी गई की नाटो में शामिल देशों का यूरोप में मुकाबला करना |


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 शीत युद्ध के दौरान बोहोत से ऐसे ही संगठन बने | शीत युद्ध के दौरान मुख्य तनाव का विषय यूरोप ही था | कई बार महाशक्तियों ने अपनी शक्ति के बलबूते पर यूरोप के देशो को अपने गुट में शामिल करने की कोशिश की उद्धरण के लिए सोवियत संघ द्वारा पूर्वी यूरोप को अपने गुट में शामिल करने के लिए अपनी शक्ति का प्रयोग किया परन्तु अमेरिका ने छोटे देशों को अपने गट में शामिल करने के लिए संगठन का तरीका अपनाया | इसीलिए अमेरिका ने दक्षिणी - पूर्वी एशियाई संधि संगठन ( सीटों ) or केंद्रीय संधि संगठन |

गुटनिरपेक्ष देश 

शीत युद्ध के दौरान विश्व के दो गुट में बंट जाने का खतरा पैदा हुआ ऐसे में नवस्वतंत्र देशो ( ब्रिटेन - फ्रांस के औपनिवेशिक देश ) को अपनी आजादी फिर से खतरे में नज़र आई इसके चलते अपनी स्वतंत्रता को बचाने के लिए इन देशो ने किसी बभी गुट में शामिल होने से मन कर दिया और स्वयं को गुटनिरपेक्ष घोषित कर दिया | यह घटना गुटनिरपेक्ष आंदोलन के रूप में प्रसिद्ध हुई| 

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