शीत युद्ध का दौर (ERA OF COLD WAR) IMPORTANT QUESTIONS ANSWER
अध्याय प्रथम "शीत युद्ध का दौर" से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न।
1. शीत युद्ध क्या है।
उत्तर : 1945 में दूसरे विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद शीत युद्ध की शुरुआत हुई। अमेरिका ने जापान के दो बड़े नगरों हिरोशिमा नागासकि पर परमाणु बम गैर कर दूसरे विश्व युद्ध की समाप्ति की। जिसके फलस्वरूप दो महाशक्तियों ( सोवियत संघ और अमेरिका ) का जन्म हुआ।
शीत युद्ध दो महाशक्तियों के मध्ये विचारधाराओ का युद्ध था। शीत युद्ध सीधे सीधे हिंसक युद्ध नहीं था, दोनों महाशक्तियों ने शीत युद्ध के दौरान अपनी अपनी राजनैतिक और आर्थिक नीतियों के आधार पर अपनी शक्ति का प्रचलन किया। दोनों महाशक्तियों ने छोटे देशो को अपने पक्ष में लाने के लिए विभ्भिन संधि की और गुट बनाये उदहारण के लिए नाटो और वरसा संधि। शीत युद्ध ने हथियारों के होड़ को जन्म दिया परन्तु तीसरा विश्वयुद्ध नहीं हुआ क्युकी दोनों महाशक्तिओ को एक दूसरे की ताकत का अंदाजा भली भाटी था।
2. क्यूबा का मसाइल संकट ?
उत्तर : क्यूबा अमेरिका से सटा एक देश था परन्तु सोवियत्त संघ उसे सैनिक और वित्तीय सहायता प्रदान करता था। 1961 में सोवियत संघ के तत्कालीन नेता निकिता ख्रुश्चेव ने इस चिंता को प्रकट करते हुए की अमेरीका कभी भी क्यूबा पर अपनी शक्ति का प्रयोग कर उसे अपने गट में शामिल कर सकता हे क्यूबा पर परमाणु मिसाइल तैनात करा दी, अमेरिका ने सोवियत संघ को जब मिसाइल हटाने को कहा तो सोवियत संघ ने इस बात को नज़र अंदाज कर दिया जिसके कारन अमेरिका ने जल के रास्ते क्युबा पहुंचए जा रहे हथियारों के जहाज को रोकने के लिए जंगी भेड़े भेज भेज दिए। सरे विश्व में ये खतरा उत्पन्न हो गया की अब तो तीसरा विश्व युद्ध होक ही रहेगा इसे ही क्यूबा का मिसाइल संकट और शीत युद्ध का चरम बिंदु कहा गया। परन्तु तीसरा विश्व युद्ध हुआ नहीं सोवियत संघ ने या तो अपने जहाजों के रफ़्तार धीमी करा दी या फिर जहाजों को वापस मुड़वा लिया और विश्व तीसरे विश्व युद्ध के संकट से निज़ाद पा गया।
3. क्या NAM अब अप्रासंगिक हो गया है?
उत्तर : ये कहना की गुटनिरपेक्ष अब अप्रासंगिक हो गया हे बिलकुल गलत हुएगा क्योकि गुटनिरपेक्ष निम्नलिखित कारणों से प्रसंगिक हैं :
यह अफरा-एशियन दे शो को सहयोग और समन्वय को बैठता और उन्हें अपनी अपनी समस्याओ के समाधान के लिए अंतराष्ट्रीय स्तर पर मंच प्रदान करता हे।
ये काम शक्ति शैली देशो को अखंडता और संप्रभुता की रक्षा करने में सहायता और महाशक्तियों में शामिल होने से रोकता हे।
यह (अफ्रीकी-एशियाई-लैटिन अमेरि की) देशो के आर्थिक विकास का उद्देश्ये रखता हे और इन देशो में लोकतंत्र को बनाये रखने का भी प्रयत्न करता हैं >
अर्थात गुटनिरपेक्ष आज भी उतना ही प्रासंगि क शीत युद्ध दौरान था परन्तु अब उसके कार्य पद्धति में थोड़ा सा परिवर्तन आ गया हैं।
4. साम्यवादी सोवियत संघ और पूंजीवादी अमेरिकी अर्थव्यवस्था में कोई तीन अंतर बताइये।
उत्तर : सामयवादी और पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में अंतर निम्नलिखित हैं।
समयवाद अर्थवयवस्था में सरकार अर्थव्यवस्था समेत सरे समाज पर अपना नियंत्रण रखती हे।
पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में सरकार की भूमिका बहुत ही न्यूनतम होतीं हैं और लोकतंत्रात्मक समाज होता हैं।
जब सोवियत संघ अस्तित्व में आया तो सोवियत संघ ने सामयवादी अर्थव्यवस्था अपनाइ
वही पश्चिमी दुनिया के देशो ने पूंजीवादी अर्थव्यवस्था अपनाई।
समयवादी अर्थव्यवस्था में समाज वर्गहीन होता हे। कोई आमीर गरीब नहीं होता।
जबकि पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में वर्गप्रणाली थी अर्थात पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में अमीर और गरीब थे।
समयवाद अर्थ व्यवस्था में सब कुछ साझा अर्थात सब को सामान रूप से प्राप्त होता था।
पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में लोग जो काम करते थे उसकी आधार पर उनकी कमाई हुआ करती थी।
सामयवादी अर्थव्यवस्था में सार्वजानिक उद्यम और संपत्ति को ही बढ़ावा दिया जाता था।
जबकि पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में निजी संपत्ति और निजी उद्यम को बढ़ावा दिया जाता था।
सामयवादी अर्थव्यवस्था में संसाधनों पर नियंत्रण केवल सरकार का होता हैं।
वही पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में संसाधनों पर व्यक्ति का नियंत्रण होता हैं और इसी कारण व्यक्ति ही अघिकतम लाभ की प्राप्ति करता
5. भारत जैसे देशो के लिए सोवियत संघ के विघटन के क्या परिणाम हुए ?
उत्तर : भारत जैसे देशो के लिए सोवियत संघ के विघटन के निम्नलिखित परिणाम हुए :
जैसे सोवियत संघ के विघटन ने दो महाशक्तियों के बीच शीत युद्ध के टकराव और वैचारिक विवादों को समाप्त कर दिया।
सैन्य गठजोड़ को समाप्त कर दिया गया था और विश्व शांति और सुरक्षा के लिए मांग उठाई गई थी।
बहु धुर्वीय प्रणाली को अस्तित्व में रखा गया था जहां कोई एकल शक्ति हावी नहीं हो सकती थी और देशों का एक समूह गुस्तनिरपेक्ष आंदोलन देशों की तरह विश्व राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता था।
अमेरिका एकमात्र महाशक्ति बन गया और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पूंजीवादी अर्थव्यवस्था हावी हो गई। विश्व बैंक और आईएमएफ संक्रमणकालीन अवधि के दौरान इन देशों को उनके आर्थिक समर्थन के कारण शक्तिशाली सलाहकार बन गए।
उदार लोकतंत्र की गति एक संगठित राजनीतिक जीवन के रूप में उभरी।
सोवियत संघ के विघटन के कारण कई नए देश स्वतंत्र आकांक्षाओं और विकल्पों के साथ उभरे।
बाल्टिक और पूर्वी यूरोपीय राज्य एरोपियन संघ में शामिल होना चाहते थे और नाटो का हिस्सा बन गए। मध्य एशियाई देशों ने अपने भौगोलिक स्थान का लाभ उठाया और रूस, पश्चिम चीन और अन्य के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए रखा
6. महाशक्तियां छोटे देशो के साथ गठबंधन क्यों रखती थी ?
उत्तर : महाशक्तियां छोटे देशो के साथ गठबंधन रखती थी क्योकि इसके कारणवश महाशक्तियों को बहुत से फायदे होते थे जो की निम्नलिखित हैं:
१. महत्वपूर्ण संसाधन : महाशक्तियों द्वारा छोटे देशो से सम्बन्ध बनाने से उन देशो के संसाधनों पर भी महाशक्तियों का अधिकार काफी हद तक हो जाता था।
२. भू-क्षेत्र : एक कारण ये भी था की छोटे देशो से गठबंधन कर उनको उन देश के भू-क्षेत्र पर अपने सैनिक अड्डे और हथियारों का संचालन करते थे।
३.सैनिक ठिकाने : महाशक्तियां अक्सर छोटे देशो से मित्रता कर वहाँ अपने सैनिक अड्डे तैनात करते थे ताकि एक दूसरे की जासूसी कर सके।
४. आर्थिक सहायता : गठबंधन के उपरांत छोटे देश महाशक्तियों के सैन्य खर्चे को वहन करने में आर्थिक सहायता प्रदान करते थे।
५. विचारधारा : महाशक्तियां छोटे देशो को अपने गुट में इसलिए भी शामिल करती थी क्युकी महाशक्तियां अपनी विचारधारा का प्रचार और उसे प्रबल बनाना चाहती थी।
7. शीत युद्ध के परिणाम की चर्चा करे।
उत्तर : १९४५ - १९९० के मध्य हुए शीत युद्ध के विभ्भिन परिणाम हुए जो की निम्न प्रकार हैं :
१. हथियारों की होड़ : दोनों महाशक्तियां अपने आपको सबसे अधिक शक्तिशाली दिखाना चाहती थी जिसके फलस्वरूप महाशक्तियों के मध्ये विभ्भिन परमाणु और हथियारों की होड़ शुरू हो गई।
२. दो धुर्वीय विश्व : शीत के दौरान दो महाशक्तियां उभरी इन दोनों महा शक्तियों ने अपने अपने गुट बनाये और इसी प्रकार विश्व दो धुर्वीय हो गया।
३. गुटनिरपेक्ष आंदोलन : जब दो धुर्वीय विश्व हो रहा था तब गुटनिरपेक्ष आंदोलन ने दो धुर्वीयता को चुनौती दी और ऐसे देश जो किसी भी गुट में शामिल नहीं होना चाहते थे उनके समक्ष एक तीसरा विकल्प रखा।
४ ; तीसरा विश्व युद्ध नहीं ठना : वैसे तो शीत युद्ध के काल में भी कई रक्त रंजीत लड़ाईया हुई परन्तु इन रक्तरंजित लड़ाइयों ने तीसरे विश्व का रूप नहीं लिया।
५ : विभ्भिन गुट : शीत युद्ध के दौरान महाशक्तियों ने छोटे देशो को अपने अंदर समायोजन के लिए गठबंधन की रहा निकली जिसके चलते महाशक्तियों ने बोहोत से गुट बनाये उदाहरण के लिए अमेरिका और सोवियत संघ ने क्रमश: नाटो और वारसा संधि की.
8. गुट निरपेक्षता क्या है व इनके संस्थापक कौन थे?
शीत युद्ध के दौरान दोनों महाशक्तियां अपने आप को अधिक से अधिक शक्तिशाली दिखने की होड़ के लिए गुट के रास्ते को अपना रही थी , ऐसे में वे देश जो तत्कालीन उपनिवेश के चंगुल से छुटे थे जैसे भारत आदि को ये अपनी स्वतंत्रता पुनः खतरे में नज़र आई जिसके चलते इन देशो ने किसी भी गट में शामिल होने से मना कर दिया और गट निर्पेक्षआंदोलन की शुरुआत की। अप्रैल 1961 में भारत के ततकालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू , , मिस्त्र के राष्रीयपति गमाल अब्दुल नासिर , युगोस्लाविया के राष्ट्रीय पति जोसिप बेरोज टीटो , इंडोनेशिया के डॉ. सुक्रणों और घाना के क़्वामे एनक्रुमा ने मिलकर इसकी स्थापना की। सन २०१२ में इसके कुल सदस्य देशो की संख्या 120 |
उत्तर : UNCTAD का पूरा नाम हैं United Nations of Conference on Trade and Development | इसकी स्थापना सन १९६४ में हुई, इसका हेडक्वाटर जेनेवा , स्वीडजर्लेंड मै स्थापित हैं। UNCTAD के निर्माण के पीछे निम्न उद्देश्ये सम्मिलितहैं।
1 सदस्य देशो के व्यापर और विकास की एक रिपोर्ट तैयार करना।
2 व्यापर और पर्यावरण के मध्ये संतुलन की समीक्षा
3 विश्व के निवेश की रिपोर्ट जारी करना।
4 अफ्रीका की रिपोर्ट में आर्थिक विकास का समिश्रण करना
5 UNCTAD संख्यिकी इसका महत्वपूर्ण उद्देश्ये था।
6 समुंद्री परिवहन की समीक्षा करना।
7 अंतराष्ट्रीय स्तर पर लेखा व रिपोर्ट की वार्षिक समीक्षा करना ।
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